Monday, July 24, 2017

आदर्श गांव--Ideal Village

गांधी जी का ये कथन कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है,एक अकाट््य सत्य है।हमारे गांव उन्नत होंगे तभी राष्टृ उन्नत और विकसित होगा। परम आदरणीय मोदी जी का गांव लेने का अनन्य प्रयास मोटी दृष्टी से से मानुषी समझा जा सकता है,पर वस्तुत:इसके पीछे अति मानवीय शक्तियां ही काम कर रहीं हैं ,इस प्रयास ने गांव वालों की खुशियां वह आकांक्षाओं आकाश तक बढ़ा दी है।एक नयी आशा की किरण वहां पहुंची है।अन्य देशवासियों के मन में भी एक आदर्श गांव कैसा हो?कि सुनहरी सम्भावनाऐं कल्पनाएं नृत्य करने लगी हैं।इसका जीता जागता उदाहरण गायत्री परिवार की तपोभूमि शांतिकुंज में देश संस्कृति विश्व विद्यालय में देखने को मिली। उसका वर्णन आगे है,  
एक आदर्श गांव की परिकल्पना गायत्री तपोभूमि शांतिकुंज हरिद्वार से की जा सकती है, जिसकी नींव सन् १९५३ में परमपूज्य प श्री राम शर्मा आचार्य जी द्वारा रखी गई थी। यह आश्रम एक आदर्श गांव कैसा हो ?का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ हैं।जहां जाकर इस घोर कलयुग में भी सतयुग का आभास होता है।जहां एक अत्यन्त आनन्द से चेतना भर जाती है।स्वच्छता,शुद्ध पर्यावरण ,वनौषधि उद्यान,हरा -भरा वातावरण,जड़ी-बूटियों से,वृक्षों सुसज्जित शान्ति कुंज एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है ।वहां पर एक तो विषयुक्त जैविक खेती की जाती है,और केंचुआ,गोबर खाद ,कचरा खाद वहीं बनाई जाती है।प्राकृतिक परम्परागत उपायों से जल संरक्षण,ऊर्जा के स्त्रोतों से--सौर ऊर्जा से बिजली की पूर्ति की जाती है। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की प्रयोगशालाओं में हर्बल पौधों,ध्यान,योग,यज्ञ,मंत्र शक्ति पर आध्यात्मिक पर्योग चलते रहते हैं,।हर वस्तु के प्रमाणित होने पर ही उस वस्तु की बिक्री होती है।सांझा बाजार में सब उपयोगी वस्तुएं उपलब्ध रहती हैं।लघु उद्योगों के माध्यम से स्वावलंबन को बढ़ावा दिया जाता है कपड़े,बैग ,दूरियां इत्यादी बनाने से लेकर साबुन,अगरबत्ती ,माचिस ,कागज़,खाने-पीने की वस्तुओं,गौधन से वस्तुओं बनाना पेपर रिसाइक्लिंग इत्यादी सब काम वहीं किते जाते हैं।सबको रोजगार मिलता है बड़े शहरों जाकर रोजगार ढूंढने की आवश्यकता नहीं पड़ती देव संस्कृति पर आधारित वि विद्यालय है,बच्चों के लिए विद्यापीठ है जहां शिक्षा ही नहीं विद्या भी दी जाती है कम्प्यूटर के साथ साथ भारतीय दर्शन,मनोविज्ञान विभाग आयुर्वैदिक पद्धति का भी ज्ञान दिया जाता है। खेल के बड़े -बड़े मैदान हैं,खेल,कला ,संगीत ,शस्त्र,शास्त्र को पूरी महत्ता दी जाती है,कृषि का अनुभव भी बच्चों को दिया जाता है। भवन सादे हैं पर हर सुविधा से सम्पन्न हैं सिवेजDrainage system उत्तम है आज तक एक भी नाली chokeरुकी नहीं है , पालीथिन का नामोनिशान नहीं है जगह जगह पानी पीने के नर हैं। शौचालय हैं देवालय भी हैं।हर भवन खंड को ऋषि मुनि का नाम दिया गया है।प्रतिदिन यज्ञशाला में यज्ञ होता है वह सुबह शाम ध्यान न प्रवचन होता है संस्कार शालाओं में उपनयन,विद्यारम्भ ,विवाह,तर्पण इत्यादि संस्कार सम्पन्न होते हैं ।छोटे-छोटे Trade-fair लगाएं जाएं।३ तरह के वृक्ष लगाएं जाएं छाया,फल और सौन्दर्य वर्धन के लिए ईंधन की लकड़ी के लिए वह इमारती लकड़ी के लिए।

कुछ अन्य सुझाव---- स्वदेशी आन्दोलन, गांव में उपलब्ध संसाधनों और समुदाय के कौशलों का उपयोग करके रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुओं के उत्पादन और लोगों को आत्मनिर्भर बनाने पर आधारित हो। जैसे कपास -जूट इत्यादि वस्तुओं का उत्पादन उन राज्यों में हो जहां इसका उत्पादन प्रचुर मात्रा में किया जाता है। __कौशल विकास हेतु-एक लघु उद्योग केन्द्र ऐसा हो जहां Skill-Developmentकिया जाएं। __सहकारी संगठन केन्द्र खोले जाएं। -----उत्पादन को खपाने के लिए तन्त्र खड़े किये जाएं इससे प्रगति की दिशा में एक नया द्वार खुलेगा -----आंगनबाढी़ जैसी संस्थाएं,महिला ,प्रौढ़ शिक्षण के लिए स्वतन्त्र पाठशालाएं खोली जाएं।
-हमारे ग्रामवासी पशु-पालन पर विशेष ध्यान दें जहां गैया होगी वहीं मैया की कृपा बरसेगी।

गोबर को ईंधन के रूप में इस्तेमाल न करके उसकी खाद बनाई जाए। रासायनिक खाद अचार-चटनी की तरह हैं,इससे धरती की भूख शान्त नहीं होती।।वह गोबर की खाद जिसकी उर्वर शक्ति और खादों से क ई गुना अधिक होती है,से ही शान्त होती है। कूड़े कचरे से यदि घर-घर में गैस बनाई जाए इसकी ट्रेनिंग ले ली जाए तो गैस की समस्या दूर हो सकती है । आमूल जैसे संगठन और खडे़ किए जाएं,जिससे एक बार फिर दूध दही की नदियां बहेंगी। बच्चों के लिए अच्छे विद्यालय हों,शौचालय हों,व्यायाम शालाओं ,खेलों के मैदान हों,न मल्लशालाऐं हों। गांव में देवालय भी हों। मनोरंजन के लिए मेलों इत्यादि का प्रावधान हो।छोटे ट्रेड फे यर लगाएं जाएं। तीन तरह के वृक्ष लगाएं जाएं तथा फल और सौन्दर्य वर्धन के लिए,ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए।बेकार और हल्की भूमि में जलाऊ लकड़ी के वृक्ष लगाएं जाएं सकते हैं। उपजाऊ भूमि में तुलसी ,एलोवेरा ,अश्वगंधा गुणकारी औषधियों के पौधे लगाए जा सकते हैंपेड़ पौधे लगाने के लिए भी कलात्मक दृष्टिकोण ,योजना और साथ में इच्छा भी होनी चाहिये।मैं चाहुंगी एक बार सब देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज था कर जरूर देखें। - आशा है कर्मशील , पुरूषार्थी,विवेकी, राष्ट्र निष्ठ ग्रामवासियों द्वारा आदरणीय मोदी जी का आदर्श गांवों का ,विकसित उन्नत भारत का सपना अवश्य पूरा होगा। - जय भारत ! भारत मां के चरणों में- ,


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